उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव की तारीखों की घोषणा कभी भी की जा सकती है। वहीं निकाय चुनाव में हरिद्वार, रू़ड़की और ऋषिकेश की सीट आरक्षित होने से भाजपा को यहां नुकसान उठाना पड़ सकता है। भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान हरिद्वार में हो सकता है।
विदित हो कि शासन द्वारा जारी सीटों के आरक्षण की सूची में हरिद्वार मेयर सीट को महिला ओबीसी और रूड़की व ऋषिकेश सीट को भी आरक्षित कर दिया था। इसके बाद मेयर पद के लिए चुनावी तैयारियों में जुटे नेताओं के आरमानों पर पानी फिर गया। ऐसी कोई महिला सर्वमान्य नेता हरिद्वार में भाजपा की न होने के कारण भाजपा के समक्ष समस्या आ सकती है।
हो सकता है कि भाजपा स्थानीय नेताओं को आगे न बढ़ने से रोकना चाहती हो। यही कारण है कि सांसद के चुनाव में भी भाजपा ने हरिद्वार के स्थानीय प्रत्याशी को दरकिनार कर बाहरी को मैदान में उतारा। इससे पूर्व भी बाहरी उम्मीद्वार को चुनाव मैदान में उतारा गया, जिस कारण से स्थानीय नेताओं में हताशा और निराशा है। अब मेयर सीट महिला ओबीसी के लिए आरक्षित होने से नेताओं के अरमानों पर एक बार फिर से पानी फेरने का कार्य किया गया।
भाजपा में कोई दमदार नेता न होना और गुटबाजी के कारण भाजपा को हरिद्वार सीट पर मुश्किलें पैदा हो कर सकती हैं।
वहीं कोरिडोर मुद्दे पर व्यापारी भाजपा के पक्ष में खड़े होते दिखायी नहीं दे रहे हैं। वहीं यदि चुनाव जनवरी माह में होते हैं तो साधु-संतों के वोटों का भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। जो की भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। कारण की संत प्रयागराज कुंभ में होंगे और वे मतदान में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। वहीं स्थानीय नेताओं के खिलाफ लोगों का आक्रोश भी भाजपा के विरोध में कार्य करेगा। इसके साथ जो नेता लम्बे समय से चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए थे वह भी खुलकर भाजपा के लिए काम नहीं करेंगे।
वहीं जिन लोगों को टिकट का लॉलीपोप दिया गया, उनमें से सभी को टिकट मिलना तो संभव नहीं है। ऐसे में जो नेता या उनकी पत्नियां टिकट से वंछित रह जाएंगी वह भी दूसरे प्रत्याशी की जड़ों में मट्ठा देने का काम करेंगी। गुटबाजी भी चुनाव में अपना रंग अवश्य दिखाएगी।
कुल मिलाकर भाजपा के लिए चुनाव जितने की राह में संतों का हरिद्वार में न होना, कोरिडोर, भीतरघात, आक्रोश बड़ी बाधा साबित हो सकते हैं। अब देखना दिलचस्प होगा की चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है।